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Friday 29 November 2013

गंगोत्री,यमुनोत्री,केदार,बद्रीनाथ चार धाम यात्रा वृतांत उत्तराखंड यात्रा में पंच केदार की यात्रा का महत्व भारत की आखरी दुकान प...

यात्रा

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गंगोत्री,यमुनोत्री,केदार,बद्रीनाथ चार धाम यात्रा वृतांत
उत्तराखंड यात्रा में पंच केदार की यात्रा का महत्व
भारत की आखरी दुकान पर चाय पिने का अपना ही मजा

झाबुआ से दिलीप सिंह वर्मा की रिपोर्ट

    भारत के उत्तराखंड राज्य में चार धाम यात्रा का अपना अलग ही स्थान है। गंगा का उदगम गंगोत्री,यमुना का उदगम यमनोत्री ओर हिमालय में भूत भावन शिव का धाम केदार नाथ तो बद्रीनाथ में बद्रीनारायण। इनसभी देवों के साथ साथ यहां का प्राकृतिक,मनोहारी,पहाडी,पर्वतीय और जंगली दृष्य बरसबस ही मन लुभावन होता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों के मानिंद चार धाम यात्रा जीवन के सार महत्व को समझने एवं उसके बदलने के लिये भाग्यशाली यात्रीयों के लिये ईश्वर कृपा से ही संभव है इस यात्रा को हर कोई भारतवंशी अपने जीवन में पूरा कर पाये ये संभव नहीं है।
चारधाम यात्रा के साथ जुडे है हरिद्वार, ऋिषिकेश, देहरादून, मसूरी,
त्रियोगीनारायण,उतरकाषी,चौपता,ओली,हेमकुंडसाहिब,जोशीमठ,उखीमठ,रूद्रप्रयाग,देवप्रयाग आदि।
 तो आईये आपको हम ले चलते है चार धाम के इस यात्रा वृतांत में सबसे पहले हरी के द्वार हरिद्वार में गंगा नदी से घीरे हरिद्वार में हरकी पोठी पर संध्या में गंगा आरती का दृश्य मनोहारी होताहै गंगा
घाटों पर स्थित मंदिरों पर घंटों की गुंजायमान होती घंटनाद तो गंगामैया की जय-जय की ध्वनी मंत्र मुग्ध कर देती है गंगास्नान कर यात्री अपने जीवन को धन्य कर लेता है वहीं हरिद्वार में शांतिकुंज मां गायत्री का शक्ति पीठ,भारत माता कामंदिर, मंशा देवी,चंडी देवी के मंदिर,पंतजली योग केंद्र सहित विभिन्न धार्मिक मंदिरों के साथ साथ कई बडे हिन्दू साधु संतों-मंहतों के आश्रम भी यहां स्थापित है । हरिद्वार से ही जुडा हुआ है ऋषिकेश जहां विशाल गंगा जी के उपर बना हुआ है लक्ष्मण झूला और राम झूला इसके अलावा कई मंदिर और आश्रम है । यहां गंगा जी में बोटिंग का अपना ही महत्व है । इनयात्राओं को करते हुए पहुंचते है उत्तराखंड की राजधानी देहरादून प्राकृतिक रूप से पूरी तरह सौदर्यप्रधान देहरादून राजधानी होने के बाद भी मंहगा नहीं है यहां कई होटले व धर्मशालाऐं है जिनमें यात्री ठहरते है देहरादून में सहस्त्राधारा,देखने लायक स्थल है यहां कई अच्छे पढाई के लिये विघालय,एवं शासकीय ट्ेनीग अकादमीयां भी है जहां पर देश के आय.ए.एस. व आय.पी.एस.अधिकारीयों को प्रशिक्षण दिया जाता है ।
देहरादूर से मसूरी जाते वक्त रास्ते में आतेहै प्रकाश शेखर महादेव का मंदिर यह मंदिर अन्यन्त मनोहारी है यहां पर स्फटीक की विशाल प्रतिमाएं स्थापितहै इस मंदिर में किसी प्रकार का चढावा नहीं लिया जाता है और या़ित्रयों को प्रसाद,चाय आदि निशुल्क उपलब्ध कराई जाती है यहां पर सभी प्रकार के रत्न मंूगा,माणीक,पना,हिरा,रूद्राक्ष आदि ग्यारंटी के साथ असली मिलते है जिनकी किमते सैकडों से लगाकर लाखों रूपयों में होती है यहां पर बंदरों की भरमार है अगर आपने थोडी भी चुक की तो आपके हाथ से खाने पिनेका सामान कब गायब हो जोगा आपको पता ही नही चले गा और बंदर झपटा मार देगें । लंबी घूमावदार चढाई के बाद आता है अन्त्यत रमणीक स्थान मसूरी जहां पर आसमान और धरती का मानो मिलन हो रहा हो बादल आपके आसपास घूम रहे हो कोहरे से सारा वातावरण धुंधंकार हो गर्मी में भी ठंड का अहसास हो लेकिन जेब काटने में यह शहर काफी आगे है सबकुछ मंहगा है अमीर वर्गीय लोगों के लिये ये जन्नत है । एक हजार से लगाकर एक लाखतक के यहां होटलों में कमरे है । घूमने फिरने व ठहरने का यहां का मजा ही निराला है ।
पहाडी रास्तों को पार करते हुए स्वान चटी,हनुमान चटी,जानकी चटी,नारद चटी होते हुए पहूंचते है यमनोत्री, यमुनोत्री जाने के लिये रास्ता काफी खराब है यहां आसानी से नहीं पहूंचा जा सकता है 6 कि.मी.की यात्रा पैदल ही करना होती है जोकि दुर्गम है । यहां जाने के लिये घोडे भी मिलते है । जिनपर बैठकर यमुनोत्री तक पहूंचा जा सकता है यहां ठंड अधिक होती है । यहां घोडो का किराया 600 से लगाकर 1000 तक होता है इसके अतिरिक्त पालकी इत्यादी भी मिलती है । यमुनोत्री पहूंचकर मंदिर स्थान तक जाने के लिये अत्यन्त सकरे लकडी के पुल को पार कर यमुना जी के उस पार जाना होता है । यमुना मंदिर के पास ही गर्मजल के कुंड में स्नान करने से सारी रास्ते की थकान मिट जाती है फिर यमुना जी के द
र्शन कर यहां बहने वाली विशाल यमुना पर्वतों को चिर कर बहती हुए अत्यन्त डरावनी प्रतित होती है । यहां फोटो लायक रमणीय दृष्य है । कई मर्तबा यहां यमुना जी के प्रवाह कारण लकडी का बना पुल बह जाता है फलस्वरूप कई बार या़त्री फंस जाते है ।
यमुना जी के दर्शन के बाद आगे बडा जाता है गंगोत्रीधाम के लिये ।
ग्ंगोत्री तक सीधे गाडी चली जाती है यहां पहुंचने में अधिक श्रम नहीं करना होता है । गंगोत्री से 16 कि.मी.जंगल में पैदल जाकर गंगा गौमुख के दर्शन किये जा सकते है जहां से विशाल गौ मुख से गंगा जी प्रकट हो रही है अपने शितल,श्वेत निर्मल जल के तेज प्रवाह से यहां से हमन ेगंगाजल भरा, गंगा नदी में हाथ डालने मात्र से ही ऐसा लगा है जैसे बर्फ में हाथ ठहरगया हो । यहां से 23 कि.मी. पर निलांग चीन की सीमा लगती है । नेपाल के कर्नल थापाद्वारा बसाया गया गंगोत्री तिर्थ स्थल पर आज भी नेपाली शैली के चिन्ह मिलते है । रास्ते में भैरोघाटी,लंका,हर्षिल आदि गांव आते है वनों एवं पहाडों से अच्छादीत सुरम्य स्थान है । रास्ते में गर्म जल कुंड स्थान गगनानी आता है यहां गर्मजल कुंड में स्थान करने से सारी थकावट दूर हो जाती है । 
पहाडी व जंगली रास्तों को पार कर अगला पडाव यात्रा का पहूंचता है उत्तरकाषी भगवान विश्वनाथ के दर्शन के बाद यात्रा आगे बढती है केदारनाथ की और रास्ते में टीहरी बांध का मनोहर हारी दृष्य द्रेखते ही बनता है विशाल टिहरी बांध को देखना अपने आपको गौरवान्वीत महसूस करने जैसा होता है । विश्व की बडी टिहरी परियोजना यहां स्थापित है । दुर्गम रास्तों को पार करते हुए पहूंचते है रूद्रप्रयाग यहां पर अलकनंदा व मंदाकनी नदी का संगम स्थल है । आगे आता है गुप्तकाशी जहां भगवान अर्द्धनारिश्वर के रूप में विराजीत है यहां मंदिर प्रांगण में आगे एक कुंड है जहां पर गंगा जी व यमुना जी गुप्त रूप से गौ मुख से निकलकर अनवरत जल धारा के रूप में बह रही है यहां पर गुप्तदान किये जाने का महत्व है ।
आगे रास्ते में फाटा आता है जहां से केदारनाथ के लिये हेलिकाप्टर सुविधा मिलती है । सोनप्रयाग होते हुए बाबा केदारनाथ के दर्शन हेतु पहूंचते है हिमालय की गौद में रामपुरा से दर्शन क्रे लिये चलते है गौरीकुंड से 14 कि.मी. की दुर्गम यात्रा घोडे,पालकी,पैदल चलकर पूरी करना होती है उपरी चडाई अत्यत्न्त कठिन 7 कि.मी.पर रामबाडा आता है जहां पर विश्राम किया जाता है फिर आगे की चडाई और सात किलोमिटर बाद हिमालय पर्वतों के बिच दर्शन होने लगते है पांडवकालिन बाबा केदार नाथ क्रे मंदीर के केदारनाथ का भव्य मंदिर जहां भगवान शिव भैसे के आकार में विराजीत है यहां पर भगवान को चांदी के बिल्व पत्र और घी चढाने का महत्व है इससे सारी हत्याओं के पाप धूल जाते है । यहां ठहरने आदि की भी व्यवस्थाऐं हैं। चारों और बर्फिलि पहाडीयां मन को मोहलेती है इन 
शिवालिक पहाडियों को देख ऐसा लगा है इन वादियों में ही बस जायें ।
त्रिजोगीनाराण 7500फिट उपर तथा गोरी कुंड से 15 कि.मी.दूर है । यहां पर तीन कुंड बने हुए है । इस स्थान पर भगवान शिव व माता पार्वती का विवाह हुआ था । यहां आज भी हवनकुंड प्रज्वलित है  तथा वह शिला भी मौजूद है जिसपर भगवान शिव माता पार्वती ने अपने विवाह के लिये फेरे लिये थे तथा जहां उनका कन्यादान किया गया था । यहां से उखीमठ पहूंचते है उखीमठ में केदारनाथ जी के पट बंद  होन ेपर भगवान की पूजा अर्चना की जाती है यहां प्राचिन मंदिर है । यहां से 27 कि.मी. की दूरी पर है उत्तराखंड की सबसे उची चोटी चौपता जोकि यहां दर्शनिय स्थान है । बाबा तुंगनाथ की  चौटी जोकि 12750 फीट पर है  यहां तक चढने का मार्ग पैदल और घ्।ोडे द्वारा है । हमने हिम्मत करके इस चौटी पर पैदल चढाई की जो कि जीवन का बडा एडवैचर था । इस स्थन पर भगवान की भुजा और हदय स्थल लिंग है । यहीं पर एक और चंद्रशिला है जहां पर चन्द्रमा ने गणेश उपासना की थी तो दूसरी ओर रावणशिला है जहां पर रावण ने अपने दश शिश काटकर शिव को प्रसन्न किया था । यह स्थान उतराखंड का सबसे उचां स्थान है यहां से पूरे क्षेत्र पर नजर डाली जा सकती है । ठंड भी यहां अधिक है यहां काटेज में रूकना काफी सुकून दायक रहता है । यहां से यात्रा बद्रीविशाल की और बडती र्है पहाडी एवं प्राकृतिक सौंदर्यको देखते हुए चमोली जिले में प्रवेश हो्रता है जहां से आगे जोशीमठ है यहां पर बद्रीनाथ जी के पठ बंद होने पर भगवान की पूजा अर्चना की जाती है नृहसी मंदिर प्राचिन है । यहीं से थोडि दूरी पर ओली है जहां पर पर्यटक बर्फ का आनन्द ट्राम ट्राली में बैठकर उठा सकते है । आगे फूलों की घाटी और हेमकुंड साहिब है जहां सिक्खों का धार्मिक स्थल है बडी संख्या में सिक्ख लोग यहां प्रतिसाल दर्शन को आते है । हेमकुंड साहिब में गुरूद्वारा में शब्दकिर्तन करने और गर्मजल में स्थान करने से सारे पापों का नाश हो जाता है रास्ते में फूलों की घाटी में तरह तरह के फूल मन को मोह लेते है । और हम पहूंच जाते है बद्रीविशाल अलकनंदा नदी के किनारे बसे विशाल बद्रीविशाल मंदिर में भगवान बद्रीविशाल अपनी बद्री पंचायत के रूप में दर्शन देने को बिराजीत है । यहां पर भी गर्म जल के कुंड बने है जहां पर महिला पुरूष अलग अलग स्नान कर भगवान के दर्शन को जाते है यहां पर बर्फिलि चोटियों के शिखर सूर्य की रोशनी में ऐसे दिखलाई पडते है मानो चांदी के पहाड खडे हुए हो ।
यहां से 3 कि.मी.दूर है भारत का आखरी गांव माणा जोकि अत्यन्त रमणीय व दर्शनिय है यहां वेद व्यास गणेश गुफा,भील शिला,सरस्वती जन्म स्थान आदि है यहां पर ही है भारत की आखरी चाय की दुकान जोकि बर्फिलि ठंडी पहाडियों में गर्मी का एहसास कराती है ।
पंच केदार की इस यात्रा में यात्रियों को पर्याप्त मात्रा में गर्म कपडे,दवाईयां,नगदी साथ में रखना चाहिये यहां पर नेटवर्क की काफी समस्या भी बनी रहती है वहीं यहां रात्रि में यात्रा करना वर्जीत होता है इसलिये शाम 6 बजे तक हमें विश्राम के लिये रूकना होता है संपूर्ण या़त्रा 9 दिनों में पूरी की जा सकती है । यह यात्रा हमें जन्म मृत्यु का एहसास कराते हुए ईश्वर के प्रति आस्था प्रगाढ करने में सहायक होती है। उतराखंड चार धाम यात्रा पूरी आस्था,श्रद्वा विश्वास के साथ की जाती है कई यात्री तो यात्रा बिच में ही अधूरी छोड देते है । यात्राऐं हमें सिखलाती है और साहसीक बनाती है कई नवीन अनुभव भी सिखलाती है अत यात्राऐं निरन्तर करते रहना चाहिये । जय बद्री जय केदार ।        
                          
चारधाम यात्रा से लौटकर दिलीप वर्मा

 
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